नेशनल हेराल्ड केस : गांधी परिवार पर आई आफ़त! ईडी की बड़ी कार्रवाई, 752 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त

नेशनल हेराल्ड केस
✍️ लेखक: 
knowyourduniya.com टीम
15 अप्रैल 2025

नेशनल हेराल्ड केस एक बार फिर सुर्खियों में है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इस बहुचर्चित मामले में बड़ी कार्रवाई करते हुए करीब 752 करोड़ रुपये की संपत्तियों को अस्थायी रूप से जब्त कर लिया है। इस कार्रवाई की जद में एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) और यंग इंडिया लिमिटेड (YIL) की संपत्तियाँ आई हैं, जिनमें दिल्ली, मुंबई और लखनऊ में स्थित कीमती अचल संपत्तियाँ  कथित रू से शामिल हैं।

नेशनल हेराल्ड केस : आखिर क्या है यह मामला ?

नेशनल हेराल्ड केस
नेशनल हेराल्ड केस

नेशनल हेराल्ड केस पिछले कुछ वर्षों में देश की राजनीति और न्याय व्यवस्था में बहुत चर्चा का विषय बना रहा है। इस केस की जड़ें एक पुराने अखबार, कुछ बड़ी राजनीतिक हस्तियों और भारी-भरकम संपत्तियों से जुड़ी हुई हैं। आइए, इस पूरे मामले को आसान भाषा में समझते हैं।

नेशनल हेराल्ड क्या है ?

नेशनल हेराल्ड एक अंग्रेज़ी भाषा का अखबार था जिसे 1942 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्रता संग्राम के समय शुरू किया था। इस अखबार को प्रकाशित करने वाली कंपनी थी – एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL)। बाद में AJL ने दो अन्य अखबार भी निकाले – ‘नवजीवन’ (हिंदी) और ‘कौमी आवाज़’ (उर्दू)

समय के साथ यह अखबार आर्थिक कारणों से बंद हो गया, लेकिन AJL के पास देश के अलग-अलग शहरों में करोड़ों रुपये की अचल संपत्तियाँ बची रहीं।

यंग इंडिया लिमिटेड की एंट्री

साल 2010 में एक नई कंपनी बनाई गई – यंग इंडिया लिमिटेड (YIL)। इस कंपनी में सोनिया गांधी और राहुल गांधी की 76% हिस्सेदारी है।

AJL का कर्ज चुकाने के बहाने यंग इंडिया ने AJL की सारी संपत्तियों का अधिग्रहण कर लिया।

ईडी और बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी का आरोप है कि यंग इंडिया ने सिर्फ 50 लाख रुपये में AJL की हजारों करोड़ की संपत्तियाँ अपने नाम कर लीं, जिससे गांधी परिवार को भारी निजी लाभ हुआ।

मामले की कानूनी स्थिति
  • सुब्रमण्यम स्वामी ने इस मामले को अदालत में उठाया और धोखाधड़ी, आपराधिक षड्यंत्र और मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया।

  • प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इस केस में जांच शुरू की और गांधी परिवार से पूछताछ की गई।

  • 2022 में ईडी ने दिल्ली, मुंबई और लखनऊ में स्थित AJL और यंग इंडिया की संपत्तियाँ जब्त कर लीं।

नेशनल हेराल्ड केस :  ईडी का आरोप क्या है ?

नेशनल हेराल्ड केस
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ईडी का आरोप है कि यंग इंडिया ने सिर्फ 50 लाख रुपये में AJL का स्वामित्व हासिल कर लिया, जबकि AJL की संपत्तियों की कीमत हजारों करोड़ रुपये है। यह लेन-देन सामान्य नहीं बल्कि धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग की योजना का हिस्सा बताया जा रहा है।

 जब्त संपत्तियों की जानकारी

ईडी ने बताया कि इस कार्रवाई के तहत:

  • दिल्ली के बहादुरशाह जफर मार्ग पर स्थित AJL की बिल्डिंग,

  • मुंबई के बांद्रा इलाके में एक कमर्शियल प्रॉपर्टी,

  • और लखनऊ में स्थित संपत्तियाँ

को जब्त किया गया है। कुल मिलाकर इनकी कीमत 751.9 करोड़ रुपये बताई जा रही है।

नेशनल हेराल्ड केस में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने जो आरोप लगाए हैं, वो काफी गंभीर हैं और सीधे तौर पर देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार — गांधी परिवार से जुड़े हुए हैं। आइए सरल भाषा में समझते हैं कि आखिर ईडी का इस केस में क्या-क्या आरोप है :

1. मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप

ईडी का सबसे बड़ा आरोप है कि इस पूरे मामले में मनी लॉन्ड्रिंग यानी अवैध रूप से पैसे की लेन-देन की गई है।

यंग इंडिया लिमिटेड नाम की कंपनी के जरिए एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) की हजारों करोड़ की संपत्ति पर कब्जा किया गया, और ये सब एक बेहद कम कीमत – सिर्फ 50 लाख रुपये में किया गया।

2. फर्जीवाड़े से संपत्ति हथियाने का आरोप

AJL के पास देशभर में कई शहरों में कीमती अचल संपत्तियाँ थीं।

ईडी का दावा है कि गांधी परिवार के पास 76% हिस्सेदारी वाली यंग इंडिया ने एक सुनियोजित योजना के तहत AJL की सारी संपत्तियों का मालिकाना हक ले लिया — बिना सही मार्केट वैल्यू दिए।

यानी, कम दाम में ज़बरदस्त मुनाफा कमाया गया, और यह पूरी प्रक्रिया कानूनी और पारदर्शी नहीं थी।

3. गांधी परिवार को हुआ व्यक्तिगत लाभ 

ईडी के मुताबिक, इस सौदे से सोनिया गांधी और राहुल गांधी को निजी तौर पर लाभ पहुंचा।

इस लाभ का कोई वैध आर्थिक आधार नहीं था और यह उनके राजनीतिक प्रभाव का गलत उपयोग माना जा रहा है।

4. इनकम टैक्स और PMLA कानूनों का उल्लंघन

ईडी का कहना है कि यंग इंडिया और AJL के बीच जो ट्रांजैक्शन हुए, वे प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) और इनकम टैक्स कानूनों का उल्लंघन करते हैं।

इसलिए एजेंसी ने इन संस्थाओं की संपत्तियों को अस्थायी रूप से जब्त कर लिया है।

5. संपत्तियों का गैर-पत्रकारीय उपयोग

AJL को पत्रकारिता के उद्देश्य से जमीनें दी गई थीं।

ईडी का आरोप है कि इन जमीनों का उपयोग अब कमर्शियल उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है — जो कि नियमों के विरुद्ध है।

नेशनल हेराल्ड केस : कांग्रेस का विरोध

नेशनल हेराल्ड केस
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नेशनल हेराल्ड केस जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, वैसे-वैसे कांग्रेस पार्टी का विरोध भी तेज़ होता जा रहा है। पार्टी का कहना है कि यह मामला सिर्फ एक कानूनी मुद्दा नहीं, बल्कि राजनीतिक बदले की भावना से प्रेरित है। आइए जानते हैं कांग्रेस के विरोध की प्रमुख बातें :

1. “राजनीतिक प्रतिशोध” का आरोप

कांग्रेस ने बार-बार यह आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार और उसकी एजेंसियाँ ईडी का दुरुपयोग कर रही हैं।

पार्टी का कहना है कि जब-जब सरकार किसी मुद्दे पर घिरती है, तब-तब गांधी परिवार को निशाना बनाया जाता है।

 कांग्रेस का बयान:

“यह कार्रवाई पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है। गांधी परिवार को डराने और बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।”

2. गांधी परिवार के समर्थन में कांग्रेस एकजुट

जब सोनिया गांधी और राहुल गांधी को ईडी के सामने पेश होना पड़ा, तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक सभी ने उनके समर्थन में मोर्चा खोल दिया।

दिल्ली से लेकर राज्यों तक कांग्रेस नेताओं ने ईडी दफ्तरों के बाहर प्रदर्शन किए और गिरफ्तारी दी।

📸 प्रदर्शन में शामिल कुछ बड़े नेता:

  • मल्लिकार्जुन खड़गे

  • प्रियंका गांधी वाड्रा

  • अशोक गहलोत

  • पवन खेड़ा

3. देशभर में कांग्रेस का आंदोलन
नेशनल हेराल्ड केस
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कांग्रेस ने इस कार्रवाई के खिलाफ पूरे देश में प्रदर्शन और आंदोलन की रणनीति अपनाई।

  • जगह-जगह पर धरना, रैलियाँ और मार्च निकाले गए।

  • कई शहरों में पुलिस ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को हिरासत में भी लिया।

 इन प्रदर्शनों का उद्देश्य है :

  • जनता को यह दिखाना कि गांधी परिवार को झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है

  • सरकार की ‘तानाशाही सोच’ को उजागर करना

4. मीडिया में कांग्रेस की प्रतिक्रिया

कांग्रेस प्रवक्ताओं ने टीवी चैनलों और प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से अपना पक्ष जोरदार तरीके से रखा।

उनका कहना है कि यह मामला एक पुराने और बंद हो चुके अखबार की संपत्ति से जुड़ा है, जिसमें कोई आपराधिक गतिविधि नहीं हुई है।

5. कोर्ट में कांग्रेस का रुख

कांग्रेस ने साफ किया है कि वह कानूनी लड़ाई भी लड़ेगी और सड़क पर संघर्ष भी करेगी

अगर जरूरत पड़ी तो पार्टी इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने के लिए तैयार है।

आगे क्या होगा ?

यह मामला अभी कोर्ट में लंबित है। गांधी परिवार पहले भी इस मामले में ईडी के सामने पेश हो चुका है। अब सवाल यह उठता है कि आने वाले दिनों में क्या और भी बड़ी कार्रवाई हो सकती है ? क्या कांग्रेस इस मामले में कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी ?

आपको क्या लगता है अपनी राय हमें कमेंट बॉक्स में लिख के जरूर बताएं…. 

निष्कर्ष:

नेशनल हेराल्ड केस सिर्फ एक अखबार की कहानी नहीं है, बल्कि इसमें राजनीति, कानून, संपत्ति और सत्ता का बड़ा खेल कथित रूप से जुड़ा हुआ है। इस केस के फैसले का असर देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी और भविष्य की राजनीति पर भी पड़ सकता है।

कांग्रेस इस केस को केवल कानूनी नहीं, बल्कि लोकतंत्र और विपक्ष की आवाज को दबाने की कोशिश मान रही है।

वह यह दिखाना चाहती है कि गांधी परिवार सिर्फ एक परिवार नहीं, बल्कि पार्टी की रीढ़ है, और यदि उन्हें निशाना बनाया गया, तो पार्टी चुप नहीं बैठेगी।

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डॉ. मनमोहन सिंह
✍️ लेखक: 
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15 अप्रैल 2025

भारत के आर्थिक इतिहास में अगर किसी एक व्यक्ति का नाम सबसे प्रमुखता से लिया जाता है, तो वह हैं डॉ. मनमोहन सिंह। एक शिक्षाविद्, अर्थशास्त्री और दूरदर्शी नेता के रूप में उन्होंने देश को उस समय दिशा दी, जब भारत एक गहरे आर्थिक संकट से गुजर रहा था। आज भी उनकी शालीनता, सादगी और ज्ञान की गहराई उन्हें भारतीय राजनीति में एक अलग मुकाम देती है।

डॉ. मनमोहन सिंह : 1991 का आर्थिक संकट और साहसिक सुधार

डॉ. मनमोहन सिंह
डॉ. मनमोहन सिंह

सन् 1991 का समय भारतीय इतिहास के लिए बेहद निर्णायक था। देश आर्थिक संकट के कगार पर खड़ा था — विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म हो चुका था ,देश के सामने आर्थिक दिवालिएपन का खतरा था , कर्ज़ बढ़ता जा रहा था, महंगाई बेकाबू थी, और भारत का अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भरोसा कमजोर हो चुका था।ऐसे कठिन समय में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री नियुक्त किया।

ऐसे गंभीर दौर में एक शांत, विद्वान और दूरदर्शी अर्थशास्त्री ने भारत को अंधकार से निकालकर उजाले की ओर अग्रसर किया — और वह थे डॉ. मनमोहन सिंह

1991 में भारत के पास सिर्फ 2 हफ्तों के आयात के लिए विदेशी मुद्रा भंडार बचा था। सरकार के पास इतने भी डॉलर नहीं थे कि तेल, दवा और आवश्यक वस्तुओं का आयात किया जा सके। देश को कर्ज़ चुकाने के लिए स्वर्ण भंडार गिरवी रखना पड़ा। IMF (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) से मदद लेने की नौबत आ गई थी।

सुधारों की शुरुआत: डॉ. सिंह की दूरदर्शिता

डॉ. मनमोहन सिंह ने वित्त मंत्री का कार्यभार संभालते ही देश को संकट से उबारने के लिए बड़ी आर्थिक नीतियों में बदलाव किए, जिन्हें हम आज “आर्थिक उदारीकरण” (Economic Liberalization) कहते हैं। उनके साहसिक कदमों में शामिल थे:

1. लाइसेंस राज का अंत

1950 के दशक से चला आ रहा लाइसेंस और कोटा सिस्टम, जिसमें हर उद्योग के लिए सरकारी अनुमति जरूरी थी — उसे हटाकर व्यापार को आज़ादी दी गई।

2. रुपये का अवमूल्यन

भारतीय रुपये का मूल्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कम किया गया ताकि निर्यात को बढ़ावा मिले और विदेशी मुद्रा भारत में वापस आए।

3. विदेशी निवेश के द्वार खुले

पहली बार भारत ने FDI (विदेशी प्रत्यक्ष निवेश) को अनुमति दी, जिससे देश में विदेशी कंपनियों ने निवेश शुरू किया।

4. निजीकरण को बढ़ावा

सरकारी कंपनियों का बोझ कम करने और प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए Public Sector Undertakings (PSUs) में सुधार और विनिवेश की शुरुआत की गई।

5. नई औद्योगिक नीति 1991

यह नीति भारतीय उद्योगों के लिए एक गेम-चेंजर बनी — इसमें टेक्नोलॉजी, उत्पादन, गुणवत्ता और वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर जोर दिया गया।

परिणाम: एक नई अर्थव्यवस्था का जन्म

डॉ. मनमोहन सिंह के इन निर्णयों का असर जल्दी दिखने लगा :

  • भारत की GDP दर में लगातार वृद्धि हुई।

  • विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत हुआ।

  • IT और सेवा क्षेत्र में अभूतपूर्व उछाल आया।

  • भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनने लगा।

आज जो हम भारत को एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में देखते हैं, उसकी नींव 1991 के इन्हीं साहसिक सुधारों ने रखी थी।

लोकसभा में ऐतिहासिक भाषण

1991 में बजट पेश करते समय डॉ. मनमोहन सिंह ने एक ऐतिहासिक पंक्ति कही थी:

“No power on earth can stop an idea whose time has come.”

(जिस विचार का समय आ गया हो, उसे कोई ताकत रोक नहीं सकती )

यह केवल एक भाषण नहीं था, बल्कि भारत के आर्थिक आत्मनिर्भर बनने की घोषणा थी।

डॉ. मनमोहन सिंह : अर्थशास्त्री से प्रधानमंत्री तक का सफर

डॉ. मनमोहन सिंह
डॉ. मनमोहन सिंह

डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन एक प्रेरणा है — एक ऐसा सफर जिसमें ज्ञान, ईमानदारी और समर्पण ने एक साधारण छात्र को भारत के सर्वोच्च पद तक पहुंचाया। वे भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने पूरी शिक्षा विदेशी विश्वविद्यालयों से प्राप्त की और राजनीति में कदम रखने से पहले एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री के रूप में ख्याति अर्जित की।

शिक्षा और प्रारंभिक जीवन
  • जन्म: 26 सितंबर 1932, गाँव गाह (अब पाकिस्तान में)

  • प्रारंभिक शिक्षा: पंजाब विश्वविद्यालय

  • उच्च शिक्षा:

    • ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (D.Phil in Economics)

    • कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (First Class Honors in Economics)

उनकी विद्वता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे सांख्यिकी, वित्त और वैश्विक अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ थे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके विचारों की सराहना होती थी।

एक सफल अर्थशास्त्री के रूप में करियर

राजनीति में आने से पहले डॉ. सिंह कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे :

  • भारत के रिज़र्व बैंक के गवर्नर (1982–1985)

  • योजना आयोग के उपाध्यक्ष

  • वित्त मंत्रालय में सचिव

  • प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार

  • विश्व बैंक में वरिष्ठ आर्थिक सलाहकार

इन सभी पदों पर रहते हुए उन्होंने भारत की नीतियों को आधुनिक आर्थिक दृष्टिकोण से मजबूत किया।

1991 : जब देश को उनकी ज़रूरत थी

भारत जब 1991 में भारी आर्थिक संकट में था, तब उन्हें वित्त मंत्री बनाया गया। उन्होंने :

  • विदेशी निवेश के द्वार खोले

  • लाइसेंस राज समाप्त किया

  • रुपये का अवमूल्यन किया

उनके सुधारों ने भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी और देश को कर्ज़ और संकट से उबारा। इस वजह से उन्हें भारत में आर्थिक सुधारों का जनक कहा जाता है।

प्रधानमंत्री बनने का सफर
डॉ. मनमोहन सिंह
डॉ. मनमोहन सिंह
  • 2004 में, जब कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए ने चुनाव जीता, तो पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद के लिए डॉ. मनमोहन सिंह को चुना।

  • वे 2004 से 2014 तक दो बार भारत के प्रधानमंत्री रहे।

यह एक ऐतिहासिक क्षण था क्योंकि:

  • वे पहले सिख प्रधानमंत्री बने।

  • उन्होंने कभी लोकसभा का चुनाव नहीं जीता, फिर भी दस वर्षों तक देश का नेतृत्व किया।

एक वैश्विक दृष्टिकोण वाला नेता

प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने:

  • भारत-अमेरिका परमाणु समझौता किया

  • विज्ञान, तकनीक, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश बढ़ाया

  • मनरेगा, RTI, और सर्व शिक्षा अभियान जैसे योजनाओं को मजबूती दी

उन्होंने चीन, अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ संबंध मजबूत किए, जिससे भारत की अंतरराष्ट्रीय साख बढ़ी।

शालीनता, सादगी और ईमानदारी की मिसाल

डॉ. मनमोहन सिंह की पहचान हमेशा उनकी:

  • शांत स्वभाव

  • सादा जीवन

  • अविवादित छवि

  • और बुद्धिमत्ता भरे निर्णयों से रही।

उनकी एक प्रसिद्ध पंक्ति जो आज भी राजनीति में आदर्श मानी जाती है:

“मैं बोलता कम हूं, लेकिन काम ज्यादा करता हूं।”

राजनीति में जहां अक्सर शोर और प्रदर्शन होता है, वहीं डॉ. मनमोहन सिंह शांत, विनम्र और विचारशील नेता के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने कभी अनावश्यक बयानबाज़ी नहीं की, बल्कि अपने कार्यों से जवाब दिया।

उनकी ईमानदारी, प्रोफेशनलिज़्म और विनम्रता को सभी दलों ने सराहा है। उनका सबसे प्रसिद्ध बयान, जो आज भी याद किया जाता है:

“इतिहास मुझे न्याय देगा।”

डॉ. मनमोहन सिंह : भारत के विकास में उनका योगदान

डॉ. मनमोहन सिंह
डॉ. मनमोहन सिंह

डॉ. मनमोहन सिंह एक ऐसे नेता हैं, जिन्होंने अपने ज्ञान, अनुभव और दूरदर्शिता से भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी। वे केवल एक प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि एक ऐसे आर्थिक वास्तुकार हैं, जिनकी सोच ने भारत को 21वीं सदी में आत्मनिर्भर और वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धी राष्ट्र बनने की राह दिखाई।

डॉ. मनमोहन सिंह का भारत के विकास में योगदान कई क्षेत्रों में देखा जा सकता है :

आर्थिक सुधारों के जनक

डॉ. मनमोहन सिंह का सबसे बड़ा योगदान है — 1991 के आर्थिक सुधार, जब वे वित्त मंत्री थे। उस समय देश आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा था और उनकी नीतियों ने भारत को उबरने में मदद की।

ज्ञान आधारित नेतृत्व

डॉ. सिंह एक अर्थशास्त्री, प्रोफेसर और योजना विशेषज्ञ के रूप में हमेशा नीतियों को तथ्यों और डाटा के आधार पर बनाते रहे। उन्होंने राजनीति में शालीनता और policy-driven governance को स्थापित किया।

प्रधानमंत्री के रूप में विकास पर फोकस (2004–2014)

प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने कई क्षेत्रों में ऐतिहासिक योगदान दिए:

शिक्षा

  • सर्व शिक्षा अभियान

  • मिड डे मील स्कीम

  • नए IITs, IIMs और केंद्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना

ग्रामीण विकास

  • मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) – गरीबों को रोजगार और आय का स्थायी साधन

  • प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना को मजबूती

स्वास्थ्य क्षेत्र

  • राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) की शुरुआत

  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को सशक्त बनाना

विदेश नीति

  • भारत-अमेरिका परमाणु समझौता (2008) – जिससे भारत को परमाणु तकनीक और ऊर्जा का मार्ग मिला

  • चीन, जापान, रूस और यूरोपीय देशों के साथ मजबूत द्विपक्षीय संबंध

शहरी विकास

  • जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी पुनर्नवीकरण मिशन (JNNURM)

  • स्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर और नगरीय सेवाओं में सुधार

ईमानदारी और सादगी की राजनीति
डॉ. मनमोहन सिंह
डॉ. मनमोहन सिंह

डॉ. सिंह का कार्यकाल भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा नहीं था। वे खुद ईमानदारी, पारदर्शिता और शालीनता की मिसाल बने रहे।

उनकी प्रसिद्ध पंक्ति थी:

“मेरी चुप्पी को मेरी कमजोरी न समझें।”

उनका नेतृत्व दिखाता है कि बिना आक्रामकता और शोर-शराबे के भी प्रभावशाली काम किए जा सकते हैं।

अर्थव्यवस्था में स्थिरता और ग्रोथ

उनके प्रधानमंत्रित्व काल में:

    • भारत की GDP ग्रोथ 8-9% तक पहुंची

    • भारत दुनिया की तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हुआ

    • लाखों लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर लाने में सफलता मिली

निष्कर्ष :

डॉ. मनमोहन सिंह सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि भारत की आर्थिक यात्रा के पथप्रदर्शक हैं। उन्होंने यह साबित किया कि एक शिक्षित, सादे और ईमानदार व्यक्ति भी राजनीति में ऊँचाई छू सकता है। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि विचार, नीतियां और शालीनता ही सच्चे नेतृत्व के मूल तत्व हैं।

डॉ. मनमोहन सिंह का 1991 में किया गया काम केवल “आर्थिक सुधार” नहीं था, वह एक आर्थिक क्रांति थी। आज अगर भारत वैश्विक मंच पर एक मजबूत अर्थव्यवस्था बनकर खड़ा है, तो उसका श्रेय इस विनम्र और सधे हुए नेता को जाता है।

उनके साहसिक फैसले, गहरी समझ और ईमानदारी ने भारत को नई दिशा दी — और यही उन्हें भारत के आर्थिक सुधारों का जनक बनाता है।

उनका जीवन हर युवा को यह प्रेरणा देता है कि ईमानदार और सच्चे इरादे से देश की सेवा की जा सकती है — बिना शोर, प्रचार या राजनीति के शोरगुल में खोए बिना।

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 – टीम Know Your Duniya

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✍️ लेखक: 
knowyourduniya.com टीम
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हर वर्ष 14 अप्रैल को देशभर में अंबेडकर जयंती बड़े गर्व और सम्मान के साथ मनाई जाती है। यह दिन केवल एक महापुरुष के जन्म की वर्षगांठ नहीं है, बल्कि यह भारत के सामाजिक पुनर्जागरण, समानता की लड़ाई और संवैधानिक चेतना का प्रतीक है। डॉ. भीमराव अंबेडकर – एक नाम, जिसने इतिहास को बदल दिया और करोड़ों लोगों को सम्मान और अधिकार की आवाज़ दी।

डॉ. भीमराव अंबेडकर : शुरुआती जीवन और संघर्ष

डॉ. भीमराव अंबेडकर
डॉ. भीमराव अंबेडकर
बचपन से भेदभाव तक – एक असमान दुनिया में जन्म

डॉ. भीमराव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के महू (अब डॉ. अंबेडकर नगर) में एक महार जाति के परिवार में हुआ। यह वह समय था जब जातिगत भेदभाव अपने चरम पर था, और महार जाति को समाज में “अस्पृश्य” माना जाता था।बचपन से ही उन्हें अस्पृश्यता और सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। स्कूल में उन्हें क्लास के अंदर बैठने की अनुमति नहीं थी, न ही पानी छूने का अधिकार।ये अपमानजनक अनुभव ही उनके जीवन का दिशा-सूचक बन गए।

“हम चाहे जहाँ पैदा हों, लेकिन हमारा भविष्य हमारे विचार और कर्म तय करते हैं।” – डॉ. अंबेडकर

उनके पिता रामजी मालोजी सकपाल ब्रिटिश भारतीय सेना में सूबेदार थे, लेकिन सामाजिक स्तर पर उन्हें और उनके परिवार को समान अधिकार नहीं थे।

शिक्षा में रुकावटें, लेकिन हौसले बुलंद

भीमराव बचपन से ही पढ़ाई में तेज थे, लेकिन स्कूल में उन्हें और उनके जैसे बच्चों को कक्षा के अंदर बैठने की अनुमति नहीं थी। उन्हें पानी तक खुद नहीं छूने दिया जाता था – कोई ऊँची जाति का व्यक्ति ही उन्हें पानी पिलाता।

इन सामाजिक ज़िल्लतों के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और शिक्षा को ही बदलाव का हथियार बना लिया।

“शिक्षा वह शस्त्र है जिससे समाज को बदला जा सकता है।” – डॉ. अंबेडकर

विदेशी शिक्षा – सपनों की उड़ान

बाबासाहेब ने बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और फिर एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए 1913 में अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी गए। वहाँ उन्होंने अर्थशास्त्र, राजनीति और समाजशास्त्र जैसे विषयों पर गहन अध्ययन किया।

इसके बाद वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स गए, जहाँ से उन्होंने डॉक्टरेट की डिग्रियाँ प्राप्त कीं। उस समय में एक दलित व्यक्ति का इस स्तर तक पहुँचना एक अभूतपूर्व उपलब्धि थी।

विदेश से लौटने के बाद का सामना – वही जातिवादी भारत

जब बाबासाहेब विदेश से वापस लौटे, तो वे उच्च शिक्षित हो चुके थे, लेकिन भारत आकर उन्हें फिर वही जातिगत भेदभाव और सामाजिक उपेक्षा का सामना करना पड़ा।

उनके अनुभवों ने उन्हें इस बात का एहसास दिलाया कि सिर्फ शिक्षा से नहीं, सामाजिक चेतना और कानूनी अधिकारों से ही समाज बदलेगा। यहीं से शुरू हुआ उनका संघर्ष – सामाजिक समानता और न्याय के लिए जीवन भर का संघर्ष।

डॉ. भीमराव अंबेडकर : अस्पृश्यता के खिलाफ विद्रोह

डॉ. भीमराव अंबेडकर
डॉ. भीमराव अंबेडकर
अस्पृश्यता – वो घाव जो कभी नहीं भुलाया गया

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महाड़ सत्याग्रह (1927) – पानी पर अधिकार की क्रांति

1927 में डॉ. अंबेडकर ने महाराष्ट्र के महाड़ शहर में एक ऐतिहासिक आंदोलन शुरू किया। वहां की नगरपालिका ने ‘अछूतों’ को सार्वजनिक जलकुंड से पानी लेने की अनुमति दी थी, लेकिन ऊँची जातियों ने इसका विरोध किया।

25,000 से ज्यादा दलितों की उपस्थिति में अंबेडकर ने चवदार तालाब से पानी पिया और कहा:

“हमें अब पूछकर नहीं, हक से जीना होगा।”

यह आंदोलन सिर्फ पानी पीने का प्रतीक नहीं था, यह मानवाधिकार और गरिमा की पुनः प्राप्ति का उद्घोष था।

कालाराम मंदिर सत्याग्रह (1930) – धर्म के दरवाज़ों को खटखटाया

नासिक स्थित कालाराम मंदिर में दलितों का प्रवेश वर्जित था। डॉ. अंबेडकर ने इस अन्याय के खिलाफ एक और ऐतिहासिक आंदोलन शुरू किया।

हज़ारों अनुयायियों के साथ उन्होंने मंदिर के बाहर प्रदर्शन किया और यह सवाल उठाया:

“अगर भगवान सबके हैं, तो मंदिर सिर्फ कुछ लोगों के लिए क्यों ?”

हालांकि उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं मिला, लेकिन इस आंदोलन ने पूरे भारत को धार्मिक असमानता के खिलाफ सोचने पर मजबूर कर दिया।

“जाति का उन्मूलन” (Annihilation of Caste) – विचारों से विद्रोह

1936 में डॉ. अंबेडकर ने “Annihilation of Caste” नामक क्रांतिकारी निबंध लिखा, जिसमें उन्होंने हिन्दू समाज की जाति व्यवस्था की जड़ पर चोट की। उन्होंने कहा:

“जाति व्यवस्था को तोड़े बिना भारत कभी भी स्वतंत्र और न्यायपूर्ण समाज नहीं बन सकता।”

यह भाषण इतना तीखा था कि आयोजकों ने उन्हें बोलने से मना कर दिया, लेकिन अंबेडकर ने उसे स्वतंत्र रूप से प्रकाशित किया और लाखों लोगों तक पहुँचाया।

अंतिम विद्रोह – धर्म परिवर्तन की क्रांति (1956)

डॉ. अंबेडकर ने कहा था:

                      “मैं उस धर्म को छोड़ता हूँ जो इंसानों में भेदभाव करता है।”

14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपनाया। यह केवल धार्मिक परिवर्तन नहीं था, बल्कि सामाजिक आज़ादी की घोषणा थी।उन्होंने हमेशा यह कहा कि:

“जो समाज अपने ही लोगों को नीचा समझता है, वह कभी महान नहीं बन सकता।”

डॉ. भीमराव अंबेडकर : संविधान निर्माण क्रांति की कलम से

डॉ. भीमराव अंबेडकर
डॉ. भीमराव अंबेडकर

जब एक कलम ने करोड़ों को अधिकार दिया…

भारत की आज़ादी केवल ब्रिटिश हुकूमत से मुक्ति नहीं थी, बल्कि यह एक ऐसे देश की रचना थी, जहाँ हर नागरिक को समान अधिकार, न्याय और गरिमा मिले। इस नए भारत की नींव रखने वाले व्यक्ति थे – डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिन्हें हम गर्व से भारत के संविधान निर्माता कहते हैं।

संविधान सभा में अंबेडकर की भूमिका

15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ और इसके बाद संविधान सभा का गठन हुआ। इस सभा में डॉ. अंबेडकर को ड्राफ्टिंग कमेटी (प्रारूप समिति) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। यह एक ऐतिहासिक क्षण था – एक ऐसा व्यक्ति, जो कभी स्कूल में जमीन पर बैठता था, अब भारत के भविष्य का खाका तैयार कर रहा था।

“संविधान केवल कानूनों का संग्रह नहीं, बल्कि एक जीवित दस्तावेज़ है जो हर नागरिक के अधिकारों की रक्षा करता है।” – डॉ. अंबेडकर

संविधान निर्माण की चुनौतियाँ

संविधान बनाना कोई आसान काम नहीं था। भारत जैसे विविधताओं से भरे देश के लिए ऐसा संविधान लिखना था, जो सभी को स्वीकार्य हो – धर्म, जाति, भाषा, वर्ग, लिंग सभी को न्याय और समानता दे सके।

डॉ. अंबेडकर ने इन चुनौतियों को गंभीरता से लिया और दुनिया के कई देशों के संविधानों का अध्ययन किया – खासकर अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और आयरलैंड के संविधान।

भारतीय संविधान की खास बातें (अंबेडकर की दृष्टि से)
  1. मौलिक अधिकार (Fundamental Rights):

    हर भारतीय को स्वतंत्रता, समानता, अभिव्यक्ति, धर्म और न्याय का अधिकार मिला – यह डॉ. अंबेडकर के विचारों की मूल आत्मा थी।

  2. समान नागरिकता:

    कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का हो, कानून की नज़र में समान है।

  3. आरक्षण व्यवस्था:

    वंचित वर्गों को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण के जरिए मुख्यधारा में लाने का प्रयास – यह सामाजिक न्याय की दिशा में ऐतिहासिक कदम था।

  4. धर्मनिरपेक्षता:

    भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित करना – जहाँ हर धर्म का सम्मान हो, लेकिन राज्य किसी धर्म से प्रभावित न हो।

26 नवंबर 1949 – संविधान का अंगीकरण

डॉ. अंबेडकर की अध्यक्षता में तैयार किया गया भारतीय संविधान 2 साल, 11 महीने और 18 दिन में पूर्ण हुआ और 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा अंगीकृत किया गया।

26 जनवरी 1950 को यह संविधान लागू हुआ और भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया।

डॉ. भीमराव अंबेडकर : चेतावनी

डॉ. भीमराव अंबेडकर
डॉ. भीमराव अंबेडकर

संविधान पारित होने के दिन डॉ. अंबेडकर ने एक ऐतिहासिक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने कहा:

“हमने राजनीतिक समानता तो पा ली है, लेकिन जब तक सामाजिक और आर्थिक समानता नहीं मिलेगी, तब तक हमारी आज़ादी अधूरी रहेगी।”

आज जो हमें मौलिक अधिकार, समानता, शिक्षा, स्वतंत्रता और धर्मनिरपेक्षता जैसे मूल्य मिले हैं, उनका श्रेय डॉ. अंबेडकर को जाता है। वे भारत के संविधान के शिल्पकार थे और संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन रहे।

उन्होंने ऐसा संविधान रचा, जो हर नागरिक को बराबरी का दर्जा देता है, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, लिंग या वर्ग से हो।

आज के भारत में बाबासाहेब का महत्व क्या है ?

डॉ. भीमराव अंबेडकर
डॉ. भीमराव अंबेडकर

समय बदला है, पर सवाल वही हैं …

जब हम डॉ. भीमराव अंबेडकर की बात करते हैं, तो अक्सर हमारा ध्यान उनके ऐतिहासिक योगदान – संविधान निर्माण, सामाजिक न्याय और दलित अधिकारों – पर जाता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या बाबासाहेब आज भी प्रासंगिक हैं? क्या उनके विचार आज के भारत को दिशा दे सकते हैं? जवाब है – हां, पहले से कहीं ज़्यादा।

1. सामाजिक समानता की ज़रूरत अब भी बनी हुई है

हालांकि संविधान ने सभी को समान अधिकार दिए हैं, लेकिन जातिगत भेदभाव, अस्पृश्यता और सामाजिक बहिष्कार आज भी कई रूपों में मौजूद हैं – खासकर ग्रामीण क्षेत्रों और गरीब तबकों में।

बाबासाहेब का सपना था – “एक ऐसा भारत जहाँ कोई ऊँच-नीच न हो, सिर्फ इंसानियत हो।”

आज जब जातिगत हिंसा की घटनाएं सामने आती हैं, हमें उनके विचारों की याद दिलाई जाती है।

2. लोकतंत्र की रक्षा के लिए अंबेडकर जरूरी हैं

अंबेडकर ने कहा था :

“अगर हमें लोकतंत्र को जीवित रखना है, तो हमें सतर्क रहना होगा कि वह सिर्फ कागज पर न रहे, बल्कि व्यवहार में भी उतरे।”

आज जब लोकतंत्र पर सवाल उठ रहे हैं – मीडिया की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आज़ादी, चुनावी पारदर्शिता – ऐसे समय में अंबेडकर की चेतावनियाँ और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाती हैं।

3. शिक्षा को बदलाव का साधन मानना

बाबासाहेब ने कहा था :

“शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो।”

आज की शिक्षा प्रणाली में गुणवत्ता की कमी, समान अवसरों की कमी और डिजिटल डिवाइड जैसी चुनौतियाँ मौजूद हैं। अंबेडकर का यह विचार कि “शिक्षा ही असली क्रांति है”, आज भी हमें आगे बढ़ने की राह दिखाता है।

4. महिलाओं के अधिकारों की रक्षा

डॉ. अंबेडकर स्त्री-स्वतंत्रता के भी बड़े समर्थक थे। उन्होंने हिंदू कोड बिल लाने का प्रयास किया ताकि महिलाओं को संपत्ति, तलाक और गोद लेने जैसे अधिकार मिल सकें।

आज जब महिला सुरक्षा, समान वेतन और सामाजिक सम्मान की बातें हो रही हैं, बाबासाहेब का स्त्री अधिकारों पर जोर देना बेहद प्रासंगिक बनता है।

5. धर्म और समाज के बीच संतुलन की जरूरत

अंबेडकर ने धर्म को इंसान की गरिमा से जोड़ा। उन्होंने धर्म के नाम पर होने वाले भेदभाव को नकारते हुए कहा:

“जो धर्म इंसान की बराबरी नहीं करता, वह धर्म नहीं हो सकता।”

आज के भारत में जब धर्म और राजनीति के नाम पर सामाजिक टकराव बढ़ रहा है, अंबेडकर की “धर्म और मानवता के बीच संतुलन” की सोच ज़रूरी हो गई है।

6. युवाओं के लिए आदर्श

अंबेडकर की कहानी हर उस युवा के लिए प्रेरणा है जो विपरीत परिस्थितियों में जी रहा है। उन्होंने सिखाया कि:

  • कभी हार मत मानो

  • सोचो, समझो और सवाल करो

  • समाज के लिए सोचो, सिर्फ खुद के लिए नहीं

आज जब समाज जाति, वर्ग और भेदभाव से जूझ रहा है, अंबेडकर के विचार और भी प्रासंगिक हो जाते हैं। उनके विचार हमें जागरूक नागरिक, न्यायप्रिय समाज और समान अवसरों वाला भारत बनाने की प्रेरणा देते हैं।

निष्कर्ष :

14 अप्रैल केवल एक जन्मतिथि नहीं, बल्कि संघर्ष से सफलता तक की प्रेरणादायक यात्रा की याद है। बाबासाहेब ने न केवल अपना जीवन संघर्षों में जिया, बल्कि दूसरों के लिए रास्ते भी खोले। आज उनकी जयंती पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि उनके सपनों का भारत – एक समान, समतामूलक और न्यायप्रिय समाज – हम सब मिलकर बनाएँगे।

डॉ. भीमराव अंबेडकर की कलम ने भारत को सिर्फ एक संविधान नहीं दिया, बल्कि एक नई चेतना, एक नया आत्मसम्मान और एक नया रास्ता दिया। उन्होंने यह साबित कर दिया कि कलम की ताकत तलवार से कहीं ज्यादा होती है।

आज जब हम लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, और समान अधिकारों की बात करते हैं, तो उसके मूल में अंबेडकर की दूरदर्शिता और मेहनत छुपी होती है।

आज हमें उनकी सिर्फ तस्वीरें नहीं चाहिए, हमें उनकी विचारधारा को अपनाना होगा।

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बैसाखी 2025 : कैसे यह पर्व किसानों के संघर्ष और समर्पण का प्रतीक है, जानिए क्या है ऐतिहासिक संबंध ?

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बैसाखी 2025 : कैसे यह पर्व किसानों के संघर्ष और समर्पण का प्रतीक है, जानिए क्या है ऐतिहासिक संबंध ?

बैसाखी

बैसाखी सिर्फ एक पर्व नहीं है, यह भारतीय कृषि परंपरा और सिख धर्म के इतिहास में गहराई से जुड़ा एक संघर्ष, समर्पण और नई शुरुआत का प्रतीक है। हर साल अप्रैल के महीने में जब खेतों में पक चुकी फसलें झूमती हैं, तब यह त्योहार किसानों के लिए खुशहाली और धन्यवाद का अवसर बनकर आता है।

बैसाखी : कृषि और किसान से जुड़ा महत्व

बैसाखी
बैसाखी

यह त्योहार मुख्यतः रबी फसलों की कटाई के समय आता है। यह वह क्षण होता है जब किसान साल भर की मेहनत के फल को अपने घर लाता है।

यह त्योहार किसानों की कड़ी मेहनत, धैर्य और संघर्ष का उत्सव है। यह  उन्हें न सिर्फ आर्थिक रूप से सशक्त बनाती है, बल्कि उनके संस्कार और संस्कृति को भी संजोए रखती है।

पंजाब, हरियाणा और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है – लोग भांगड़ा और गिद्दा करते हैं, लोक गीत गाए जाते हैं, और गुरुद्वारों में लंगर व कीर्तन का आयोजन होता है।

बैसाखी : ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, खालसा पंथ की स्थापना

बैसाखी
बैसाखी

इस पर्व का इतिहास 1699 ईस्वी से जुड़ा है, जब गुरु गोबिंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में हजारों लोगों के सामने खालसा पंथ की स्थापना की थी। उन्होंने पांच प्यारे (पंज प्यारे) चुनकर सिखों को धर्म, साहस और समर्पण की राह पर चलने की प्रेरणा दी।

यह वही बैसाखी थी जब लोगों को अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध लड़ने का साहस मिला। इसलिए यह त्योहार सिर्फ फसल और त्योहार तक सीमित नहीं, बल्कि यह आत्मिक जागरूकता, निडरता और धार्मिक एकता का भी प्रतीक है।

बैसाखी 2025: उत्सव का नया रंग

बैसाखी
बैसाखी

इस साल, यह  त्योहार 2025 को लेकर देशभर में खास उत्साह देखा जा रहा है।गांव-गांव में मेले, नगर कीर्तन, पारंपरिक नृत्य और लोक संगीत की गूंज सुनाई दे रही है।नए दौर में यह पर्व हमें याद दिलाता है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ हों, अगर हम संघर्ष और समर्पण से डटे रहें, तो हर बैसाखी नई खुशियाँ लेकर आएगी।

बैसाखी : सामाजिक एकता और सामूहिकता का संदेश

यह त्योहार सिर्फ एक पारंपरिक पर्व नहीं, बल्कि यह सामूहिकता और सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है। जब गांवों में हर वर्ग, हर उम्र के लोग साथ आकर त्योहार मनाते हैं, तो यह भारतीय सामाजिक ढांचे की जड़ों में बसी एकता और सहयोग की भावना को दर्शाता है।

गुरुद्वारों में लगे लंगर में अमीर-गरीब, जात-पात, धर्म-भेद का कोई स्थान नहीं होता — सभी एक साथ बैठकर भोजन करते हैं, और यही है बैसाखी का असली संदेश:

“एकता में ही शक्ति है।”

बैसाखी : आधुनिक समय में इस पर्व का बढ़ता महत्व

आज जब दुनिया शहरीकरण, तकनीकी बदलाव और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रही है,यह त्योहार हमें प्रकृति से जुड़ाव और मिट्टी की महत्ता का अहसास कराती है।

यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि कृषि सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि जीवनदायिनी शक्ति है। किसानों का संघर्ष सिर्फ खेतों में नहीं, बल्कि पूरे समाज की उन्नति में योगदान करता है।

वर्तमान में कई एग्रीटेक स्टार्टअप्स और सरकार की योजनाएं किसानों की मदद कर रही हैं, और बैसाखी जैसे पर्व इन प्रयासों को उत्साह और गर्व का अवसर देते हैं।

बैसाखी : प्रेरणादायक तथ्य

  • वर्ष 1699 की बैसाखी को ही सिख धर्म का आधिकारिक रूप मिला था।

  • “वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह” – यही उद्घोष उस ऐतिहासिक बैसाखी का था।

  • भारत के अलावा नेपाल और पाकिस्तान में भी यह त्योहार को पारंपरिक रूप से मनाया जाता है।

  • इस त्योहार के समय कई लोक नृत्य प्रतियोगिताएं और सांस्कृतिक आयोजन भी होते हैं जो युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ते हैं।


निष्कर्ष :

यह त्योहार 2025 सिर्फ एक तारीख नहीं है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत, किसानों की मेहनत, और सिख धर्म के अद्वितीय बलिदान की कहानी है।इस अवसर पर हमें न केवल त्योहार मनाना चाहिए, बल्कि अपने किसानों और इतिहास को सम्मान देने का भी संकल्प लेना चाहिए।

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हनुमान जन्मोत्सव 2025 : भक्ति में डूबा देश, धूमधाम से मनाया गया हनुमान जन्मोत्सव

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हनुमान जन्मोत्सव 2025 : भक्ति में डूबा देश, धूमधाम से मनाया गया हनुमान जन्मोत्सव

हनुमान जन्मोत्सव

12 अप्रैल 2025 को पूरे भारतवर्ष में श्रद्धा, आस्था और उत्साह के साथ हनुमान जन्मोत्सव मनाया गया। इस पावन अवसर पर मंदिरों में घंटियों की मधुर ध्वनि, चालीसा पाठ की गूंज और भक्तों के जयकारों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया।

हनुमान जन्मोत्सव : क्यों मनाया जाता है ?

हनुमान जन्मोत्सव
हनुमान जन्मोत्सव

हनुमान जी, जिन्हें बजरंगबली, मारुति नंदन, और राम भक्त हनुमान के नाम से जाना जाता है, भगवान शिव के 11वें रूद्र अवतार माने जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार, चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि को हनुमान जी का जन्म हुआ था। इस दिन को हनुमान जन्मोत्सव के रूप में देशभर में बड़े उत्साह से मनाया जाता है।


हनुमान जन्मोत्सव : मंदिरों में विशेष आयोजन

देश के कोने-कोने में स्थित हनुमान मंदिरों को फूलों और दीपों से सजाया गया। प्रसिद्ध मंदिरों जैसे कि:

  • हनुमान गढ़ी (अयोध्या)

  • संकटमोचन मंदिर (वाराणसी)

  • झंडेवाला हनुमान मंदिर (दिल्ली)

  • सालासर बालाजी (राजस्थान)

…में हजारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़े। चालीसा पाठ, सुंदरकांड पाठ और भंडारे का आयोजन हुआ।


हनुमान जन्मोत्सव : भव्य शोभायात्रा और जागरण

हनुमान जन्मोत्सव
हनुमान जन्मोत्सव

कई शहरों में भव्य शोभायात्रा निकाली गईं, जिनमें झांकियों के माध्यम से हनुमान जी के जीवन के विविध प्रसंगों को दर्शाया गया। रात्रि जागरण में भजन-कीर्तन के माध्यम से भक्तों ने पूरी रात राम नाम का गुणगान किया।


हनुमान जन्मोत्सव : चालीसा और सुंदरकांड का पाठ
हनुमान जन्मोत्सव
हनुमान जन्मोत्सव

हनुमान जन्मोत्सव के अवसर पर भक्तों ने 108 बार हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ कर अपने आराध्य को प्रसन्न किया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन हनुमान जी की पूजा करने से सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।


हनुमान जन्मोत्सव : विदेशों में भी गूंजा हनुमान जन्मोत्सव

केवल भारत ही नहीं, बल्कि अमेरिका, कनाडा, मॉरीशस, फिजी, और ब्रिटेन जैसे देशों में बसे प्रवासी भारतीयों ने भी मंदिरों में विशेष पूजा और आयोजन किए। न्यूयॉर्क के हनुमान मंदिर में डिजिटल सुंदरकांड का लाइव प्रसारण हुआ जिसे हज़ारों लोगों ने ऑनलाइन देखा।

इन देशों में भी हनुमान जी का महत्वपूर्ण स्थान है। थाईलैंड में तो एक नृत्य नाटिका “रामाकियन” में हनुमान जी वीर योद्धा के रूप में दिखाए जाते हैं।

जानिए हनुमान जी से जुड़ी कुछ रोचक बातें :

1. हनुमान जी को मिला है अमरत्व का वरदान

हनुमान जी को चिरंजीवी (अमर) होने का आशीर्वाद प्राप्त है। माना जाता है कि वे आज भी पृथ्वी पर जीवित हैं और भगवान राम के भक्तों की सहायता करते हैं।

2. रामायण के सभी पात्रों में सबसे बुद्धिमान

हनुमान जी को ‘ज्ञान गुन सागर’ कहा गया है। वे वेद, व्याकरण, योग और ज्योतिष सहित सभी शास्त्रों में निपुण थे।

3. हनुमान जी ने सूर्य को फल समझ कर निगल लिया था

बाल अवस्था में हनुमान जी ने उगते हुए सूर्य को लाल फल समझकर निगल लिया था, जिससे पूरी सृष्टि अंधकारमय हो गई थी।

4. पंचमुखी हनुमान का रहस्य

लंका में अहिरावण को मारने के लिए हनुमान जी ने पांच मुखों वाला रूप धारण किया था:

  • हनुमान (मुख्य)

  • नरसिंह

  • गरुड़

  • वराह

  • हयग्रीव

5. हनुमान जी और समुद्र की गहराई

लंका जाने के लिए जब समुद्र पार करना था, तो जामवंत ने हनुमान जी को उनका बल याद दिलाया, और तब उन्होंने पहली बार आकाश मार्ग से लंबी छलांग लगाई।

6. हनुमान जी को कई नामों से जाना जाता है

  • बजरंगबली
  • मारुति नंदन
  • पवनपुत्र
  • अंजनीसुत
  • संकटमोचन

7. महाभारत में भी हनुमान जी का जिक्र है

हनुमान जी ने भीम को उनका अहंकार तोड़ने के लिए मार्ग में पूंछ रखकर रोका था और अर्जुन के रथ के ऊपर ध्वज स्वरूप उपस्थित रहे।

हनुमान जन्मोत्सव
हनुमान जन्मोत्सव

8. हनुमान जी को सिंदूर क्यों चढ़ाया जाता है ?

एक कथा के अनुसार, माता सीता ने जब सिंदूर लगाने का महत्व बताया तो हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया ताकि भगवान राम की उम्र लंबी हो।

9. हनुमान जी का जिक्र इंडोनेशिया, थाईलैंड और कंबोडिया में भी

रामायण की तरह की कथाओं में इन देशों में भी हनुमान जी का महत्वपूर्ण स्थान है। थाईलैंड में तो एक नृत्य नाटिका “रामाकियन” में हनुमान जी वीर योद्धा के रूप में दिखाए जाते हैं।

10. हनुमान जी के कान में राम नाम लिखा गया है

कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हनुमान जी के कानों में हमेशा “राम” नाम की ध्वनि गूंजती रहती है और उन्होंने अपने जीवन को प्रभु श्रीराम के चरणों में अर्पित कर दिया।

हनुमान जन्मोत्सव
हनुमान जन्मोत्सव

हनुमान जन्मोत्सव 2025 ने यह सिद्ध कर दिया कि श्रद्धा, भक्ति और एकता जब एक साथ आती हैं, तो हर दिल में राम नाम गूंजने लगता है। यह पर्व न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक समरसता और मानसिक शांति का प्रतीक भी है।

आपने इस जन्मोत्सव को कैसे मनाया? नीचे कमेंट में ज़रूर बताएं !

जय बजरंगबली!

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“लालू यादव: उनके 76 वर्ष का सफर सामाजिक न्याय का प्रतीक या विवादों का बादशाह ?”

लालू यादव

लालू यादव ने 1970 के दशक में जेपी आंदोलन के दौरान सक्रिय राजनीति में कदम रखा। इस आंदोलन ने उन्हें राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में एक मज़बूत पहचान दिलाई। वे 1977 में मात्र 29 वर्ष की उम्र में लोकसभा के लिए चुने गए, जो उस समय बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी ,और आज वो 76 वर्ष के है ।

लालू यादव : राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो की संघर्षगाथा

लालू यादव
लालू यादव
1. जन्म और प्रारंभिक जीवन

लालू प्रसाद यादव का जन्म 11 जून 1948 को बिहार के गोपालगंज ज़िले के फुलवरिया गाँव में एक गरीब यादव (पिछड़ा वर्ग) परिवार में हुआ। उनके पिता किसानी और पशुपालन से जीविकोपार्जन करते थे।

परिवार बड़ा था और संसाधन सीमित। ऐसे में लालू का बचपन गरीबी और अभावों में बीता।

2. शिक्षा और छात्र जीवन की राजनीति

लालू यादव ने शुरुआती पढ़ाई गाँव में की और फिर पटना यूनिवर्सिटी से राजनीति शास्त्र में स्नातक और विधि (LLB) की डिग्री हासिल की।

छात्र जीवन में ही वे राजनीति में सक्रिय हो गए और पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ के अध्यक्ष भी बने।

इसी दौर में वे जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चलाए गए ‘संपूर्ण क्रांति आंदोलन’ से जुड़ गए, जिसने उन्हें राष्ट्रीय पहचान दिलाई।


3. राजनीतिक करियर की शुरुआत
लालू यादव
लालू यादव

1977 में, आपातकाल के बाद हुए चुनाव में लालू यादव को पहली बार लोकसभा सदस्य बनने का मौका मिला। वे मात्र 29 वर्ष की उम्र में सांसद बन गए।

इस समय वे जनता पार्टी से जुड़े थे और कर्पूरी ठाकुर जैसे नेताओं से प्रेरणा लेते थे।


4. बिहार के मुख्यमंत्री बने (1990–1997)

लालू यादव 1990 में बिहार के मुख्यमंत्री बने। इस समय बिहार की राजनीति में ऊँची जातियों का वर्चस्व था।

उन्होंने “सामाजिक न्याय” और “पिछड़े वर्गों के हक़” की राजनीति को आगे बढ़ाया।

उनका सबसे चर्चित कदम था –

➡️ मंडल कमीशन की सिफारिशों का समर्थन, जिससे OBC (Other Backward Classes) को आरक्षण मिला।

➡️ उन्होंने “भूरा बाल साफ करो (ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत, लाला) का नारा देकर पिछड़ों को एकजुट किया।

लालू यादव
लालू यादव

5. लोकप्रियता की ऊंचाई और जनता के बीच जुड़ाव

लालू यादव का देसी अंदाज़, लोकभाषा में भाषण, गाय-भैंस पालना, और आम जनता से जुड़ाव उन्हें ‘जनता का नेता’ बना देता था।

उनका कहना था –

“भैंस चराऊँगा, लेकिन समाज के लिए लड़ाई नहीं छोड़ूंगा।”


6. चारा घोटाला और राजनीतिक गिरावट (1997)

1990 के दशक में चारा घोटाला सामने आया, जिसमें सरकारी खजाने से करोड़ों रुपये निकाले गए थे।

1997 में जब CBI ने लालू यादव का नाम इस घोटाले में जोड़ा, तो उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा

लेकिन उन्होंने राजनीति में एक नया अध्याय लिखा —

➡️ अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया, जो राजनीति में नई थीं।

➡️ इसी समय उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की स्थापना की।

यह कदम जितना चर्चित था, उतना ही विवादास्पद भी।

लालू यादव
लालू यादव

7. जेल यात्रा और कानूनी लड़ाइयाँ

लालू यादव को 2013, 2017 और 2020 में चारा घोटाले के विभिन्न मामलों में सजा हुई।

वे कई बार रांची की जेल गए और फिर एम्स, दिल्ली में स्वास्थ्य के आधार पर भर्ती भी रहे।

उनकी पार्टी के लिए यह समय बेहद चुनौतीपूर्ण रहा।


8. परिवार और राजनीतिक उत्तराधिकारी

लालू यादव के 9 बच्चे हैं, जिनमें से दो बेटे –

👉 तेज प्रताप यादव

👉 तेजस्वी यादव

राजनीति में सक्रिय हैं।

तेजस्वी यादव ने अब RJD की कमान संभाल ली है और वे बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं।

लालू यादव
लालू यादव

9. NDA के खिलाफ गठबंधन और वर्तमान राजनीति

2015 में लालू यादव ने नीतीश कुमार और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया और भाजपा को हराया।

लेकिन यह गठबंधन ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका क्योंकि नीतीश कुमार ने बाद में भाजपा से हाथ मिला लिया

2020 और 2024 के चुनावों में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में RJD ने खुद को फिर से मजबूत किया है।

लालू यादव अब भी पार्टी की रणनीति में मार्गदर्शक की भूमिका निभा रहे हैं।


लालू यादव के संघर्ष की विशेषताएं :

संघर्ष क्षेत्र

विवरण

आर्थिक

बेहद गरीबी में बचपन, खेती-बाड़ी और पशुपालन से जुड़े

सामाजिक

ऊँची जातियों के वर्चस्व को चुनौती दी, पिछड़ों-दलितों को राजनीति में उठाया

राजनीतिक

छात्र नेता से लेकर मुख्यमंत्री और फिर राष्ट्रीय नेता का सफर

कानूनी

चारा घोटाले में सजा, कई बार जेल यात्रा

पारिवारिक

राजनीति में पूरे परिवार की भागीदारी, खासकर तेजस्वी और तेज प्रताप

निष्कर्ष

लालू प्रसाद यादव सिर्फ एक नेता नहीं, एक आंदोलन हैं।

उनकी राजनीति ने भारतीय समाज में सामाजिक न्याय, पिछड़े वर्गों के अधिकार और जनसंपर्क आधारित राजनीति को नया आयाम दिया।चुनौतियों के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी – और यही उन्हें एक संघर्षशील नेता बनाता है।

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भारतीय सेना : 7 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर में वज्र और डैगर डिवीज़नों की युद्ध तत्परता का जायज़ा लेने पहुंचे सेना प्रमुख जनरल द्विवेदी

भारतीय सेना

भारतीय सेना प्रमुख, जनरल उपेंद्र द्विवेदी, ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर में अग्रिम चौकियों का दौरा किया और वज्र तथा डैगर डिवीज़नों की संचालनात्मक तैयारियों का गहन निरीक्षण किया। इस दौरे के दौरान, उन्होंने वर्तमान सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की और सैनिकों के साथ बातचीत की।

भारतीय सेना
भारतीय सेना

जनरल द्विवेदी ने उत्तरी कश्मीर में नियंत्रण रेखा (LoC) पर स्थित वज्र डिवीज़न के मुख्यालय का दौरा किया, जहां उन्हें वज्र और डैगर डिवीज़नों की संचालनात्मक तैयारियों पर विस्तृत जानकारी दी गई। उन्होंने राज्य की सुरक्षा स्थिति पर चर्चा करने के लिए एक उच्चस्तरीय सुरक्षा समीक्षा बैठक में भी भाग लिया।

इसके अतिरिक्त, सेना प्रमुख ने श्रीनगर का दौरा किया, जहां उन्होंने चिनार कॉर्प्स के कमांडर से विस्तृत जानकारी प्राप्त की और वर्तमान सुरक्षा परिदृश्य पर व्यापक चर्चा की। उन्होंने सभी रैंकों की प्रतिबद्धता, संचालनात्मक तत्परता और पेशेवरिता की सराहना की।

भारतीय सेना
भारतीय सेना

जनरल द्विवेदी ने सैनिकों के साथ बातचीत के दौरान उभरते खतरों के प्रति सतर्क रहने और उच्च स्तर की तैयारी बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने सैनिकों की कठिन परिस्थितियों में उनकी समर्पण भावना और दृढ़ता की प्रशंसा की।

सेना प्रमुख का यह दौरा जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा और सेना की तैयारियों को मजबूत करने के उद्देश्य से किया गया था। भारतीय सेना क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए सतर्क और प्रतिबद्ध है।

जनरल द्विवेदी का यह दौरा जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा और सेना की तैयारियों को मजबूत करने के उद्देश्य से किया गया था। भारतीय सेना क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए सतर्क और प्रतिबद्ध है।

भारतीय सेना : जनरल उपेंद्र द्विवेदी कौन है ?

जनरल उपेंद्र द्विवेदी भारतीय सेना के 30वें थलसेनाध्यक्ष (Chief of the Army Staff) हैं, जिन्होंने 30 जून 2024 को यह पदभार ग्रहण किया। उनका जन्म 1 जुलाई 1964 को हुआ था। उन्होंने सैनिक स्कूल, रीवा से शिक्षा प्राप्त की और बाद में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) और भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) से प्रशिक्षण लिया।

15 दिसंबर 1984 को, जनरल द्विवेदी को जम्मू और कश्मीर राइफल्स की 18वीं बटालियन में कमीशन प्राप्त हुआ। अपने लगभग 40 वर्षों के सेवा काल में, उन्होंने विभिन्न महत्वपूर्ण कमांड, स्टाफ, शिक्षण और विदेशी नियुक्तियों पर कार्य किया है। इनमें 18 जम्मू और कश्मीर राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर, 26 सेक्टर असम राइफल्स के ब्रिगेडियर, असम राइफल्स (पूर्व) के इंस्पेक्टर जनरल और 9 कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग शामिल हैं।

जनरल द्विवेदी ने उत्तरी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ के रूप में भी सेवा की है, जहां उन्होंने चीन और पाकिस्तान के साथ सीमाओं पर संचालन का व्यापक अनुभव प्राप्त किया। इसके अलावा, उन्होंने उप सेना प्रमुख (Vice Chief of the Army Staff) के रूप में भी कार्य किया है।

अपने सेवा काल के दौरान, जनरल द्विवेदी को परम विशिष्ट सेवा मेडल (PVSM) और अति विशिष्ट सेवा मेडल (AVSM) से सम्मानित किया गया है।

भारतीय सेना : जनरल उपेंद्र द्विवेदी को उनकी उत्कृष्ट सेवा और प्रमुख सैन्य पदक 

जनरल उपेंद्र द्विवेदी को उनकी उत्कृष्ट सेवा के लिए निम्नलिखित प्रमुख सैन्य पदकों से सम्मानित किया गया है:

  1. परम विशिष्ट सेवा मेडल (PVSM): यह पदक उन्हें 2024 में प्रदान किया गया, जो सेना में उनकी विशिष्ट और उत्कृष्ट सेवा को मान्यता देता है।

  2. अति विशिष्ट सेवा मेडल (AVSM): इससे पहले, 2021 में उन्हें यह पदक उनकी विशिष्ट सेवा के लिए दिया गया था।

इन प्रमुख पदकों के अलावा, जनरल द्विवेदी को तीन बार जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ (GOC-in-C) कमेंडेशन कार्ड से भी सम्मानित किया गया है, जो उनकी विशिष्ट उपलब्धियों और योगदान को दर्शाता है।<

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बोकारो : बोकारो में विस्थापितों और CISF के बीच झड़प, लाठीचार्ज में 1 व्यक्ति की मौत

बोकारो

3 अप्रैल 2025 को झारखंड के बोकारो स्टील प्लांट के इस्पात भवन मुख्यालय के बाहर विस्थापित प्रदर्शनकारियों और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के जवानों के बीच झड़प हो गई।

बोकारो : क्या था मामला ?

बोकारो
बोकारो

विस्थापित अप्रेंटिस संघ (VAS) के बैनर तले प्रदर्शन कर रहे लोग रोजगार की मांग कर रहे थे। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि बोकारो स्टील प्लांट में विस्थापितों को नौकरी दी जाए।

बोकारो : कैसे भड़की हिंसा ?

प्रदर्शनकारियों के अनुसार जब प्रदर्शनकारी मुख्यालय के बाहर जुटे, तो CISF ने उन्हें हटाने के लिए लाठीचार्ज किया। इस दौरान 45 वर्षीय प्रेम महतो की सिर पर गंभीर चोट लगने से मौत हो गई और दर्जनों लोग घायल हो गए।

इस घटना ने इलाके में तनाव बढ़ा दिया है, और प्रदर्शनकारियों ने न्याय की मांग की है। इस मामले में प्रशासन से भी कार्रवाई की मांग की जा रही है। सूत्रों की माने तो किसी जन प्रतिनिधि के उकसाने की वजह से लोग गुस्से में उग्र हो गए । इधर सोशल मीडिया पर भ्रामक खबरें भी फैलाई जाने लगी और अलग अलग पक्ष के लोग अपने अनुसार  खबरें फ़ैलाने लगे ।

बोकारो
बोकारो

सूत्रों के अनुसार ये भी जानकारी मिली है की सभी व्हाट्सप्प ग्रुप को खंगाला जायेगा और उग्र एवं हिंसक वार्तालाप करने वाले और हिंसा में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष योगदान करने वाले के विरुद्ध प्रशासन  जरूर कार्रवाई कर सकती है

बोकारो के पुलिस अधीक्षक (एसपी) चंदन कुमार झा ने कहा कि लाठीचार्ज में पुलिस की कोई संलिप्तता नहीं है। कांग्रेस नेता मनोज कुमार ने कहा, “लाठीचार्ज उस समय हुआ जब राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के एन त्रिपाठी प्रदर्शनकारी मजदूरों की चिंताओं को सुनने के लिए मौके पर पहुंचे थे।”

बोकारो : क्या है प्लांट में उत्पादन की स्थिति  ?

सूत्रों की माने तो प्लांट के उत्पादन पर कुछ हद तक असर पड़ा है , कर्मचारी प्लांट में कल से ही फसे हुए हैं , लोग   अपनी ड्यूटी तक नहीं जा पा रहे हैं । अव्यवस्था का आलम ये है की प्लांट के लगभग सभी गेट जाम है और लोग जो प्लांट के अंदर फसे हुए हैं उनके लिए भोजन की व्यवस्था बोकारो प्रबंधन द्वारा किया जा रहा है ।

प्लांट के कर्मचारी के परिवारजन व्याकुल हैं और घर पर वापस लौटने का इन्तजार कर रहे हैं । दूसरी और घटना में मारे गए व्यक्ति के परिजन काफी गुस्से में है और उनका कहना है की जब इतने दिनों से प्रदर्शन हो रहा था तो बोकारो के अधिकारी मिलने में विलम्ब क्यों कर रहे थे ?

और पढ़ें :

https://www.aajtak.in/india/jharkhand/story/bokaro-steel-city-protest-turns-violent-a-man-dies-in-lathicharge-lclk-strc-2207881-2025-04-03

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वक्फ विधेयक 2025 पारित : पक्ष में 288 वोट ! जानें नए कानून के बड़े बदलाव और असर

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वक्फ विधेयक 2025 पारित : पक्ष में 288 वोट ! जानें नए कानून के बड़े बदलाव और असर

वक्फ विधेयक 2025

वक्फ विधेयक 2025 : वक्फ बिल पर मोदी सरकार ने पहली परीक्षा पास कर ली है. विपक्ष के विरोध के बावजूद लोकसभा में वक्फ संशोधन बिल पास हो गया. किरेन रिजिजू ने बिल पेश किया और 10 घंटे की चर्चा के बाद इसे 288-232 मतों से पारित किया गया. अब राज्यसभा में चुनौती है।

वक्फ विधेयक 2025
वक्फ विधेयक 2025

Table Of Contents :

  1. परिचय

  2. वक्फ विधेयक 2025 क्या है?

  3. इस विधेयक के प्रमुख प्रावधान

  4. वक्फ संपत्तियों पर नया नियंत्रण

  5. नए कानून के प्रभाव

  6. समर्थन और विरोध

  7. निष्कर्ष


1.वक्फ विधेयक 2025 : परिचय

भारत सरकार ने हाल ही में वक्फ विधेयक 2025 को पारित कर दिया है। इस नए कानून का उद्देश्य देश में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को पारदर्शी और अधिक प्रभावी बनाना है। इस विधेयक में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं, जो वक्फ बोर्ड, संपत्तियों और उनके उपयोग को प्रभावित करेंगे।वक्फ बोर्ड में बदलावों को लेकर मोदी सरकार ने दो विधेयक पेश किए हैं जिनके नाम हैं- वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 और मुसलमान वक्फ (निरसन) विधेयक, 2024। इसे 8 अगस्त, 2024 को लोकसभा में पेश किया गया।

वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 संसद के सदन लोकसभा में 8 अगस्त 2024 को पेश किया गया। इसका उद्देश्य मुसलमान वक्फ अधिनियम, 1923 और वक्फ अधिनियम, 1995 के अंदर संशोधन करना है।


2. वक्फ विधेयक 2025 क्या है?

वक्फ संपत्तियाँ वे भूमि और संपत्तियाँ होती हैं, जो इस्लामी धार्मिक और परोपकारी उद्देश्यों के लिए दान की जाती हैं। इनका प्रबंधन वक्फ बोर्ड द्वारा किया जाता है। वक्फ विधेयक 2025 का मुख्य उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकना और बेहतर प्रशासन सुनिश्चित करना है।

सरकार ने वक्फ बिल के साथ कुछ समस्या बताई हैं, –

  • वक्फ संपत्तियों की अपरिवर्तनीयताः ‘एक बार वक्फ, हमेशा वक्फ’ के सिद्धांत ने विवादों को जन्म दिया है।
  • कब्जे की शिकायतें, कानूनी विवाद और मिसमैनेजमेंट
  • वक्फ संपत्तियों का अधूरा सर्वेक्षण
  • कोई न्यायिक निगरानी नहीं- वक्फ ट्रिब्यूनल्स के फैसलों को हाईकोर्ट या दूसरी अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • वक्फ अधिनियम की संवैधानिक वैधता- वक्फ अधिनियम केवल एक धर्म पर लागू होता है, जबकि अन्य के लिए इसके समान कोई कानून मौजूद नहीं है। ऐसे में यह संविधान की भेदभाव ना करने की भावना के खिलाफ है।

3.वक्फ विधेयक 2025 : प्रमुख प्रावधान

नया वक्फ विधेयक कई महत्वपूर्ण संशोधनों और नियमों को लागू करता है। नीचे इसकी मुख्य विशेषताएँ दी गई हैं:

क्रम संख्या

प्रावधान

विवरण

1

वक्फ संपत्तियों का डिजिटल रिकॉर्ड

सभी वक्फ संपत्तियों का डिजिटलीकरण किया जाएगा।

2

कड़े निगरानी उपाय

सरकार और वक्फ बोर्ड की निगरानी बढ़ाई जाएगी।

3

गैर-कानूनी कब्जे पर सख्त कार्रवाई

अवैध कब्जे करने वालों पर कड़ी सजा का प्रावधान।

4

पारदर्शिता और जवाबदेही

वित्तीय रिकॉर्ड को सार्वजनिक किया जाएगा।

5

नए विवाद समाधान तंत्र

वक्फ संपत्तियों से जुड़े मामलों के लिए नया न्यायिक तंत्र बनेगा।

4. वक्फ संपत्तियों पर नया नियंत्रण

इस विधेयक के तहत सरकार और वक्फ बोर्ड को अतिरिक्त अधिकार दिए गए हैं। अब वक्फ संपत्तियों को बेचने, किराए पर देने या अन्य उपयोग में लाने के लिए कड़े नियमों का पालन करना होगा। साथ ही, अवैध अतिक्रमण को हटाने के लिए विशेष फास्ट-ट्रैक कोर्ट की व्यवस्था की गई है


5. वक्फ विधेयक 2025 : नए कानून के प्रभाव

इस विधेयक के पारित होने के बाद निम्नलिखित प्रभाव देखे जा सकते हैं:

  • पारदर्शिता में वृद्धि – डिजिटल रिकॉर्ड के कारण घोटालों और भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी।

  • अवैध कब्जे खत्म होंगे – सरकारी हस्तक्षेप से संपत्तियों पर गैर-कानूनी कब्जे रोके जा सकेंगे।

  • वक्फ संपत्तियों का सही उपयोग – इन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज कल्याण के लिए सही तरीके से उपयोग किया जा सकेगा।

  • धार्मिक संस्थाओं का बेहतर प्रशासन – वक्फ संपत्तियों से जुड़ी गतिविधियों की निगरानी आसान होगी।


6. वक्फ विधेयक 2025 : समर्थन और विरोध

समर्थन:

  • सरकार का कहना है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों की बेहतर सुरक्षा और उपयोगिता सुनिश्चित करेगा

  • कई संगठनों ने डिजिटल रिकॉर्ड और पारदर्शिता बढ़ाने के फैसले का समर्थन किया

विरोध:

  • कुछ धार्मिक संगठनों का मानना है कि सरकार का बढ़ता नियंत्रण वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को प्रभावित कर सकता है

  • कुछ समूहों ने आशंका जताई है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों पर सरकारी दखल को बढ़ा सकता है।X पर एक यूजर ने कुछ ऐसा पोस्ट किया है ।


7. निष्कर्ष

वक्फ विधेयक 2025 का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा और उनके सही उपयोग को सुनिश्चित करना है। हालाँकि, इसके कुछ प्रावधानों को लेकर मतभेद भी हैं। समय के साथ यह स्पष्ट होगा कि यह कानून वास्तव में वक्फ संपत्तियों के प्रशासन को सुधारने में कितना कारगर साबित होता है

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Rana Sanga : कौन था ये योद्धा Rana जिसने 1518 में इब्राहिम लोदी को हराया था ? क्या है देश में बवाल का कारण ?

Rana Sanga

राणा सांगा (Rana Sanga), जिन्हें महाराणा संग्राम सिंह के नाम से भी जाना जाता है, मेवाड़ के एक महान शासक थे जिन्होंने 1509 से 1527 तक शासन किया। उनकी वीरता, युद्ध कौशल और रणनीतिक समझ के कारण वे भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

Rana Sanga : Rana Sanga कौन था ये योद्धा ?

Rana Sanga
Rana Sanga

राणा सांगा, जिन्हें महाराणा संग्राम सिंह के नाम से भी जाना जाता है, मेवाड़ के एक महान शासक थे जिन्होंने 1509 से 1527 तक शासन किया। उनकी वीरता, युद्ध कौशल और रणनीतिक समझ के कारण वे भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

राणा सांगा: मेवाड़ के वीर योद्धा का जीवन परिचय

पूरा नाम: महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा)

जन्म: 12 अप्रैल 1482, चित्तौड़गढ़, मेवाड़

पिता: महाराणा रायमल

माता: रानी पृथ्वीराज

राज्याभिषेक: 1509 ई.

मृत्यु: 17 मार्च 1528, कालपी


परिचय

राणा सांगा, यानी महाराणा संग्राम सिंह, मेवाड़ के सबसे वीर योद्धाओं में से एक थे। वे सिसोदिया राजवंश के थे और अपनी बहादुरी, युद्ध कौशल और राष्ट्रभक्ति के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी राजपूताना को मुगलों और विदेशी आक्रमणकारियों से बचाने में लगा दी।


Rana Sanga :  शासन और उपलब्धियाँ

1. राज्य विस्तार और युद्ध नीति

राणा सांगा ने मेवाड़ को एक शक्तिशाली राज्य बनाया। उन्होंने मालवा, गुजरात, दिल्ली और अजमेर तक अपने राज्य का विस्तार किया। उनकी युद्ध रणनीति इतनी कुशल थी कि वे कमजोर सेना के बावजूद कई बड़े युद्ध जीतने में सफल रहे।

2. महत्वपूर्ण युद्ध

(क) खानवा का युद्ध (1527)

•बाबर के खिलाफ राणा सांगा की सबसे प्रसिद्ध लड़ाई थी।

•बाबर की तोपों और बारूद वाली सेना के सामने राणा सांगा की पारंपरिक राजपूती सेना कमजोर पड़ी।

•युद्ध में पराजय के बाद भी राणा सांगा ने हार नहीं मानी और फिर से एक शक्तिशाली सेना बनाने की कोशिश की।

(ख) खानदेश और मालवा पर विजय

•राणा सांगा ने सुल्तान महमूद खिलजी से मालवा को जीत लिया और इसे अपने साम्राज्य में मिला लिया।

•उन्होंने खानदेश और गुजरात के कई क्षेत्रों पर भी अधिकार कर लिया।


Rana Sanga :   व्यक्तित्व और विरासत

अदम्य साहस: राणा सांगा ने 80 से अधिक घाव खाकर भी अपने राज्य की रक्षा की थी। उनके एक हाथ और एक पैर कट चुके थे, लेकिन फिर भी वे युद्ध के मैदान में डटे रहे।

राजपूती शान: उन्होंने कभी किसी विदेशी शासक के सामने सिर नहीं झुकाया और वीरता की मिसाल कायम की।

मृत्यु: खानवा युद्ध के बाद राणा सांगा ने बाबर को हटाने के लिए एक और सेना तैयार की, लेकिन उनके ही सरदारों ने उन्हें जहर देकर मार दिया।


FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

1. राणा सांगा का सबसे बड़ा युद्ध कौन-सा था?

खानवा का युद्ध (1527) बाबर के खिलाफ उनका सबसे बड़ा युद्ध था।

2. राणा सांगा की मृत्यु कैसे हुई?

•उन्हें उनके ही सरदारों ने जहर दे दिया था क्योंकि वे बाबर के खिलाफ फिर से युद्ध छेड़ना चाहते थे।

3. क्या राणा सांगा ने बाबर को हराया था?

•प्रारंभ में वे बाबर पर भारी पड़े, लेकिन बाबर की तोपों और बारूद ने युद्ध का परिणाम बदल दिया।


स्रोत और प्रमाणिकता

ऐतिहासिक ग्रंथ: “वीर विनोद” (शिवदास), “तारीख-ए-शेरशाही”

पुरातत्व साक्ष्य: चित्तौड़गढ़ किला, खानवा युद्ध क्षेत्र

इतिहासकारों के उद्धरण: जदुनाथ सरकार, के.एस. लाल


Rana Sanga : क्यों है देश में इतना बवाल इनके नाम पर ?

समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद रामजी लाल सुमन ने मेवाड़ के महान योद्धा राणा सांगा को ‘गद्दार’ कहकर संबोधित किया, जिससे राजनीतिक और सामाजिक हलकों में तीव्र प्रतिक्रिया हुई है। इस बयान के बाद विभिन्न संगठनों, विशेषकर करणी सेना, ने विरोध प्रदर्शन किए और सुमन के आवास पर प्रदर्शन किया। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा।

रामजी लाल सुमन के इस बयान के खिलाफ राजस्थान से उत्तर प्रदेश तक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। करणी सेना ने समाजवादी सांसद को धमकी भी दी है। वहीं, भाजपा के नेता अखिलेश यादव पर सवाल उठा रहे हैं और राजस्थान विधानसभा में हंगामा हो रहा है। रामजी लाल सुमन से माफी की मांग की जा रही है, लेकिन उन्होंने माफी मांगने से इनकार कर दिया है।

यह विवाद ऐतिहासिक व्यक्तित्वों के प्रति सम्मान और उनके योगदान की समझ को लेकर समाज में व्याप्त संवेदनशीलता को दर्शाता है। ऐसे मामलों में सार्वजनिक हस्तियों को अपने वक्तव्यों में सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि समाज में अनावश्यक तनाव और विवाद उत्पन्न न हों।

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