✍️ लेखक: knowyourduniya.com टीम 20 अप्रैल 2025
भारत के राजनीतिक इतिहास में कुछ नाम ऐसे हैं जो सदैव याद किए जाते हैं — उनमें से एक हैं इंदिरा गांधी। उन्हें ‘Iron Lady of India’ और ‘राजनीति की शेरनी’ जैसे उपनामों से नवाज़ा गया। इंदिरा गांधी न केवल भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं, बल्कि उन्होंने अपने निर्णयों, साहस और नेतृत्व क्षमता से दुनिया भर में भारत की एक अलग पहचान बनाई।
इंदिरा गांधी : प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि
इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज), उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनका पूरा नाम था इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू। वे भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू की एकमात्र संतान थीं।
उनका परिवार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से गहराई से जुड़ा हुआ था। पंडित नेहरू और मोतीलाल नेहरू (इंदिरा के दादा) दोनों स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी नेता थे। इसी कारण बचपन से ही इंदिरा का संपर्क देश की राजनीति और आंदोलन से रहा।
बचपन की झलकियाँ
इंदिरा गांधी का बचपन स्वतंत्रता आंदोलन के बीच बीता। जब उनके पिता जेल जाते थे, तब इंदिरा को अकेलेपन और जिम्मेदारियों का अनुभव होता था। उनकी मां कमला नेहरू भी अस्वस्थ रहती थीं, इसलिए कम उम्र में ही इंदिरा ने मानसिक रूप से परिपक्व होना शुरू कर दिया।
उन्होंने बहुत कम उम्र में ही “वानर सेना” नाम से बच्चों का एक संगठन बनाया था, जो स्वतंत्रता सेनानियों की सहायता करता था। इससे उनके नेतृत्व गुणों की शुरुआत मानी जाती है।
शिक्षा की शुरुआत
इंदिरा गांधी की प्रारंभिक शिक्षा इलाहाबाद के मॉडर्न स्कूल से हुई। इसके बाद वे पुणे और फिर शांति निकेतन (विश्व भारती विश्वविद्यालय, पश्चिम बंगाल) में पढ़ने गईं, जहाँ उन्होंने रवीन्द्रनाथ टैगोर से गहरे प्रभाव पाए।
हालांकि उनकी माँ की खराब सेहत के कारण उन्हें पढ़ाई कई बार बीच में छोड़नी पड़ी। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी।
विदेश में उच्च शिक्षा
उच्च शिक्षा के लिए वे इंग्लैंड चली गईं, जहाँ उन्होंने पहले ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सोमरविले कॉलेज में दाखिला लिया।
हालांकि स्वास्थ्य समस्याओं और पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण उनकी पढ़ाई बाधित रही, फिर भी उन्होंने इतिहास, राजनीति और अर्थशास्त्र जैसे विषयों में गहरी रुचि ली।
शिक्षा का प्रभाव उनके व्यक्तित्व पर
इंदिरा गांधी की शिक्षा ने उनके भीतर गहन राजनीतिक समझ, आत्मनिर्भरता और नेतृत्व के गुण विकसित किए। शांति निकेतन में टैगोर का सान्निध्य और ऑक्सफोर्ड की वैश्विक दृष्टिकोण वाली शिक्षा ने उन्हें एक दूरदर्शी नेता बनने में मदद की।
इंदिरा गांधी : राजनीतिक सफर की शुरुआत

इंदिरा गांधी का जीवन राजनीति की छांव में शुरू हुआ था। उनके पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू, स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री थे, और उनके दादा मोतीलाल नेहरू भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता थे। ऐसे माहौल में पली-बढ़ी इंदिरा गांधी के लिए राजनीति एक स्वाभाविक मार्ग बन गया था।
पंडित नेहरू की सहयोगी के रूप में
1950 के दशक में, जब पंडित नेहरू प्रधानमंत्री बने, तब इंदिरा गांधी ने एक निजी सहयोगी (Personal Assistant) के रूप में उनके साथ काम करना शुरू किया। इस दौरान उन्होंने न केवल प्रशासनिक कार्यों को समझा, बल्कि देश-विदेश की राजनीति, कूटनीति और सामाजिक मुद्दों की गहरी समझ भी हासिल की।
कांग्रेस पार्टी में सक्रिय भूमिका
इंदिरा गांधी ने 1955 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कार्यसमिति (Working Committee) की सदस्यता ग्रहण की।
वर्ष 1959 में वे कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनीं — यह एक बड़ी जिम्मेदारी थी, जिसने उन्हें पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में ला खड़ा किया।
पहली बार प्रधानमंत्री कैसे बनीं ?
1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने, तो इंदिरा गांधी को सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया।
शास्त्री जी के आकस्मिक निधन के बाद, 1966 में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया। कई वरिष्ठ नेताओं के विरोध के बावजूद, पार्टी के भीतर और जनता के बीच उनकी लोकप्रियता अधिक थी।
24 जनवरी 1966 को इंदिरा गांधी भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बन गईं। यह भारतीय राजनीति के इतिहास का एक ऐतिहासिक मोड़ था।
शुरुआती चुनौतियाँ
प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद उन्हें कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा:
आर्थिक संकट
खाद्यान्न की कमी
विदेशी दबाव
पार्टी के भीतर विरोध
लेकिन उन्होंने इन चुनौतियों का सामना बड़ी सूझ-बूझ और आत्मविश्वास के साथ किया।
इंदिरा गांधी : बड़ी उपलब्धियाँ

इंदिरा गांधी को सिर्फ भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि एक ऐसी नेता के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने राजनीति में दृढ़ इच्छाशक्ति, निर्णय लेने की हिम्मत, और राष्ट्रहित में कठोर कदम उठाने का साहस दिखाया। उन्होंने अपने कार्यकाल में कई ऐतिहासिक उपलब्धियाँ हासिल कीं, जो आज भी भारतीय राजनीति और इतिहास में मील का पत्थर मानी जाती हैं।
1. बैंकों का राष्ट्रीयकरण (1969)
इंदिरा गांधी का सबसे क्रांतिकारी और साहसी कदम था — 14 प्रमुख निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण।
इसका उद्देश्य था:
आम जनता की बचत को सुरक्षित करना,
ग्रामीण क्षेत्रों तक बैंकिंग सेवाएं पहुंचाना,
किसानों, छोटे व्यापारियों और गरीबों को ऋण सुविधा देना।
यह कदम भारतीय अर्थव्यवस्था को जन-केंद्रित बनाने की दिशा में ऐतिहासिक था।
2. हरित क्रांति (Green Revolution)
इंदिरा गांधी के कार्यकाल में कृषि क्षेत्र में हरित क्रांति की शुरुआत हुई।
इसमें उन्नत बीज, उर्वरक और सिंचाई तकनीकों का उपयोग बढ़ाया गया।
इससे अनाज उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि हुई और भारत ने खाद्यान्न संकट से उबरकर आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ाया।
उन्होंने प्रसिद्ध वैज्ञानिक एम. एस. स्वामीनाथन और कृषि विशेषज्ञों के सहयोग से इस क्रांति को सफल बनाया।
3. 1971 का भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश की रचना
इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने 1971 में पाकिस्तान को निर्णायक युद्ध में हराया।
इस युद्ध के बाद बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया।
इंदिरा गांधी ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी इस संघर्ष के लिए समर्थन जुटाया।
इस विजय के बाद उन्हें “दुर्गा” और “भारत की शेरनी” जैसे सम्मानित उपनाम मिले।
4. पोखरण परमाणु परीक्षण (1974)
18 मई 1974 को इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने पहला परमाणु परीक्षण (Smiling Buddha) राजस्थान के पोखरण में सफलतापूर्वक किया।
इससे भारत एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बना।
इस परीक्षण ने भारत को वैश्विक मंच पर मजबूती से स्थापित किया और सुरक्षा नीति को नया आधार दिया।
5. गरीबी हटाओ का नारा (Garibi Hatao)
इंदिरा गांधी ने 1971 के चुनाव में “गरीबी हटाओ” का नारा दिया, जिससे उन्हें बड़ी जनसमर्थन मिला।
उन्होंने ग्रामीण विकास, खाद्य सुरक्षा, जनकल्याण योजनाएं और छोटे उद्योगों को प्रोत्साहन देकर समाज के गरीब तबके के लिए काम किया।
यह नारा आज भी भारत के सामाजिक-आर्थिक सुधार की दिशा में एक प्रेरणा बना हुआ है।
6. विदेश नीति में सशक्त नेतृत्व
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) में भारत की भूमिका को इंदिरा गांधी ने और मज़बूत किया।
उन्होंने अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाए रखते हुए भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को आगे बढ़ाया।
अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के देशों के साथ भारत के संबंधों को सुदृढ़ किया।
इंदिरा गांधी : विवाद और आलोचनाएँ

इंदिरा गांधी को भारत की ‘Iron Lady’ कहा जाता है — एक ऐसी नेता जिन्होंने देश के लिए बड़े और साहसी फैसले लिए। लेकिन हर बड़े नेता की तरह, उनके निर्णयों पर भी समय-समय पर तीखी आलोचनाएं हुईं।
कुछ फैसले ऐसे थे, जिन्होंने उन्हें जनता की आंखों में लोकप्रिय बनाया, तो कुछ ने उनकी छवि को विवादों में घेर लिया।
1. आपातकाल (Emergency) – 1975 से 1977
इंदिरा गांधी के कार्यकाल का सबसे विवादास्पद अध्याय था आपातकाल।
25 जून 1975 को देश में आपातकाल घोषित किया गया।
इसकी वजह बनी इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा उनके चुनाव को अवैध ठहराना।
इसके बाद इंदिरा गांधी ने प्रेस की स्वतंत्रता पर रोक लगा दी,
राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाला गया,
नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया।
यह समय भारतीय लोकतंत्र के लिए एक काला अध्याय माना जाता है।
उनकी इस कार्रवाई को तानाशाही प्रवृत्ति का प्रतीक कहा गया और पूरे देश में इसका विरोध हुआ।
2. ऑपरेशन ब्लू स्टार (1984)
इंदिरा गांधी ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में छिपे उग्रवादियों को हटाने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया।
यह सैन्य अभियान जून 1984 में चलाया गया था।
ऑपरेशन में सैकड़ों लोगों की मौत हुई, जिसमें निर्दोष श्रद्धालु भी शामिल थे।
इस अभियान के बाद सिख समुदाय में गहरा आक्रोश फैल गया।
3. नासिक बांग्लादेशी शरणार्थी नीति
1971 के युद्ध के दौरान, लाखों बांग्लादेशी शरणार्थी भारत आए।
इंदिरा गांधी की सरकार पर यह आरोप लगा कि उन्होंने लंबे समय तक इन शरणार्थियों के पुनर्वास की प्रभावी योजना नहीं बनाई, जिससे असम और पूर्वोत्तर राज्यों में सामाजिक तनाव बढ़ा।
4. निजीकरण बनाम समाजवाद की बहस
बैंकों के राष्ट्रीयकरण और उद्योगों पर सरकारी नियंत्रण जैसे निर्णयों के चलते उन्हें समाजवाद की समर्थक कहा गया।
लेकिन विपक्ष ने उन पर आरोप लगाए कि यह कदम आर्थिक विकास की गति को धीमा कर रहा है और निजी क्षेत्र को कमजोर कर रहा है।
5. वंशवाद की राजनीति का आरोप
इंदिरा गांधी पर यह भी आरोप लगा कि उन्होंने अपने बेटे संजय गांधी को राजनीति में बिना अनुभव के आगे बढ़ाया।
संजय गांधी की कार्यशैली को कई बार तानाशाही माना गया, विशेषकर आपातकाल के दौरान चलाए गए नसबंदी अभियान (Forced Sterilization Program) के कारण।
इंदिरा गांधी : हत्या और अंत

इंदिरा गांधी का जीवन भारत की राजनीतिक गाथा का एक अनमोल अध्याय था। उन्होंने देश को कई ऐतिहासिक क्षण दिए — गरीबी हटाओ का नारा, बांग्लादेश का निर्माण, परमाणु शक्ति की दिशा में कदम… लेकिन उनका अंत जितना साहसी था, उतना ही दर्दनाक और चौंकाने वाला भी।
31 अक्टूबर 1984 का दिन भारतीय राजनीति के इतिहास में एक काला दिन बन गया।
ऑपरेशन ब्लू स्टार : अंत की शुरुआत
जून 1984 में इंदिरा गांधी ने पंजाब में तेजी से बढ़ रहे खालिस्तानी उग्रवाद पर नियंत्रण पाने के लिए ऑपरेशन ब्लू स्टार चलाया।
इस सैन्य अभियान के तहत भारतीय सेना ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में छिपे आतंकियों को बाहर निकालने के लिए हमला किया।
हालांकि आतंकियों का सफाया हो गया, लेकिन सैकड़ों निर्दोष श्रद्धालु और जवान भी मारे गए।
यह कार्रवाई सिख समुदाय के बीच गहरी नाराजगी और असंतोष का कारण बनी।
सुरक्षा में चूक और हत्या की योजना
ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इंदिरा गांधी को सलाह दी गई थी कि वे सिख अंगरक्षकों को सुरक्षा दस्ते से हटा दें, लेकिन उन्होंने इसे खारिज कर दिया।
उन्होंने कहा था:
“I am not afraid of dying. If I die today, every drop of my blood will invigorate the nation.”
“अगर मैं आज मर भी जाऊं, तो मेरा खून भारत की हर बूँद में बस जाएगा।”
– इंदिरा गांधी
उनके ये शब्द जल्द ही भविष्यवाणी जैसे सिद्ध हुए।
हत्या की घटना : 31 अक्टूबर 1984
31 अक्टूबर 1984 की सुबह, इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री निवास से अपने कार्यालय के लिए निकलीं।
जैसे ही वे 7, रेसकोर्स रोड (अब लोक कल्याण मार्ग) से निकलीं और अपने सुरक्षा दस्ते को पार करने लगीं,
वहीं तैनात दो सिख अंगरक्षकों — सतवंत सिंह और बेअंत सिंह — ने उन पर गोलियों की बौछार कर दी।
उन्हें 30 से ज्यादा गोलियां लगीं।
उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टर उन्हें बचा नहीं सके। भारत ने अपनी सबसे साहसी नेता को खो दिया।
हत्या के बाद देश में हालात
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश, खासकर दिल्ली और उत्तर भारत में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे।
हजारों निर्दोष सिखों की हत्या कर दी गई।
कई जगहों पर आगज़नी, लूटपाट और हत्याएं हुईं।
यह हिंसा भारतीय लोकतंत्र पर गहरा धब्बा बन गई।
इंदिरा गांधी की राजनीतिक विरासत
उनकी हत्या के तुरंत बाद उनके बेटे राजीव गांधी को प्रधानमंत्री बनाया गया।
हालाँकि इंदिरा गांधी चली गईं, लेकिन उनके विचार, नीति और नेतृत्व आज भी भारतीय राजनीति को दिशा देते हैं।
उनकी मृत्यु ने देश को झकझोर दिया, लेकिन साथ ही यह भी साबित किया कि वे भारत के दिल में अमर रहेंगी।
इंदिरा गांधी : विरासत
इंदिरा गांधी को आज भी एक दृढ़ नारी नेतृत्व, साहस और राष्ट्रहित में कठोर निर्णय लेने वाली नेता के रूप में याद किया जाता है। वे भारतीय राजनीति की सबसे प्रभावशाली और प्रेरणादायी महिलाओं में से एक थीं।
हमको धूम धाम चाइये या हमको अपने देश को मजबूत बनाना है | Indira Gandhi pic.twitter.com/eJEibkIbkO
— Deepak Khatri (@Deepakkhatri812) April 17, 2025
निष्कर्ष :
इंदिरा गांधी का जीवन एक महिला के संघर्ष, सफलता और नेतृत्व की मिसाल है। उन्होंने न केवल राजनीति में महिला सशक्तिकरण को परिभाषित किया, बल्कि यह भी दिखाया कि अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी बाधा राह रोक नहीं सकती।
इंदिरा गांधी का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा किसी भी युवा के लिए प्रेरणा का स्रोत है। कठिन परिस्थितियों, पारिवारिक जिम्मेदारियों और सामाजिक दबावों के बावजूद उन्होंने खुद को न केवल शिक्षित किया, बल्कि देश का नेतृत्व करने योग्य भी बनाया। उनके जीवन की यह शुरुआत ही आगे चलकर उन्हें भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनने के मार्ग पर ले गई।
इंदिरा गांधी का राजनीतिक सफर अचानक नहीं शुरू हुआ, बल्कि यह वर्षों की तैयारी, अनुभव और समझ का नतीजा था। उन्होंने न केवल अपने पारिवारिक राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया, बल्कि खुद को एक स्वतंत्र, निर्णायक और मजबूत नेता के रूप में स्थापित किया।
इंदिरा गांधी की ये उपलब्धियाँ केवल राजनीतिक निर्णय नहीं थीं, बल्कि उन्होंने देश की दिशा और दशा को गहराई से प्रभावित किया।
उनका नेतृत्व एक ऐसा अध्याय है, जिसने भारत को आत्मनिर्भरता, साहस और सशक्त नेतृत्व का पाठ पढ़ाया। यही कारण है कि उन्हें आज भी “भारत की लौह महिला” (Iron Lady of India) के नाम से याद किया जाता है।इंदिरा गांधी एक साहसी और निर्णायक नेता थीं, लेकिन उनके कुछ निर्णयों ने उन्हें विवादों के घेरे में भी डाला।
उनकी आलोचना इसलिए नहीं होती कि उन्होंने गलत किया, बल्कि इसलिए कि वे कठिन और जटिल निर्णयों से भी पीछे नहीं हटीं — चाहे उनकी लोकप्रियता पर उसका कितना भी असर क्यों न पड़े।
एक नेता की महानता उसकी सफलता के साथ-साथ उसके निर्णयों की पारदर्शिता से भी आंकी जाती है, और इंदिरा गांधी का जीवन उसी जटिल परिभाषा का प्रतिनिधित्व करता है।
इंदिरा गांधी की हत्या केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक युग का अंत था।उनकी मृत्यु ने देश को यह सिखाया कि राजनीति में साहस के साथ-साथ संवेदनशीलता और संयम भी जरूरी हैं।
आज भी जब भारत की महिला सशक्तिकरण की बात होती है, तो इंदिरा गांधी का नाम सबसे पहले लिया जाता है — एक ऐसी नेता जो अंत तक न डरी, न झुकी।
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– टीम Know Your Duniya
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